भगवान महावीर जैन धर्म के 24वें और अंतिम तीर्थंकर हैं। आज उनके जन्म कल्याणक के अवसर पर जानते हैं कि उन्होंने वस्त्र त्याग क्यों किया था, दिगंबर जैन मुनियों का जीवन कैसा होता है और जैन दर्शन वास्तव में क्या है?

भगवान महावीर का जीवन परिचय:
- भगवान महावीर का जन्म 599 ईसा पूर्व में वैशाली (बिहार) में हुआ था।
- उनका जन्म का नाम वर्धमान था।
- 30 वर्ष की आयु में उन्होंने गृह त्याग कर संन्यास ग्रहण कर लिया।
- 12 वर्षों की कठोर तपस्या के बाद उन्हें केवलज्ञान प्राप्त हुआ।
- 30 वर्षों तक उन्होंने अहिंसा धर्म का प्रचार किया।
- 477 ईसा पूर्व में कार्तिक कृष्ण अमावस्या के दिन उन्होंने मोक्ष प्राप्त किया।
भगवान महावीर ने वस्त्र त्याग क्यों किए?
भगवान महावीर ने वस्त्र त्यागने के पीछे कई कारण बताए हैं, जिनमें प्रमुख हैं:
- aparigraha (अपरिग्रह): अपरिग्रह का अर्थ है सभी प्रकार की वस्तुओं से मोह त्यागना। भगवान महावीर का मानना था कि वस्त्र भी एक प्रकार का परिग्रह है, जिससे मोह पैदा होता है।
- समानता: वस्त्र त्यागने से सभी मनुष्य समान दिखाई देते हैं, चाहे वे अमीर हों या गरीब।
- आत्मशुद्धि: वस्त्र त्यागने से मन और शरीर दोनों शुद्ध होते हैं।
- अहिंसा: वस्त्र बनाने के लिए रेशम के कीड़ों और अन्य जीवों को मारना पड़ता है। भगवान महावीर अहिंसा के कट्टर समर्थक थे, इसलिए उन्होंने वस्त्र त्याग दिए।
दिगंबर जैन मुनियों का जीवन:
दिगंबर जैन मुनि वे होते हैं जो जीवन भर वस्त्र नहीं पहनते हैं। उनका जीवन कठोर तपस्या और त्याग से भरा होता है। वे निम्नलिखित नियमों का पालन करते हैं:
- अहिंसा: वे किसी भी जीव को किसी भी प्रकार का नुकसान नहीं पहुंचाते हैं।
- सत्य: वे सदैव सत्य बोलते हैं।
- अचौर्य: वे चोरी नहीं करते हैं।
- ब्रह्मचर्य: वे आजीवन ब्रह्मचर्य का पालन करते हैं।
- aparigraha (अपरिग्रह): वे किसी भी प्रकार की वस्तु का संग्रह नहीं करते हैं।
जैन दर्शन:
जैन दर्शन छह मूल सिद्धांतों पर आधारित है:
- ** जीव:** जीव आत्मा है जो अमर और अनादि है।
- अजीव: अजीव निर्जीव पदार्थ है जो नाशवान है।
- बंध: जीव और अजीव के बीच का संबंध बंध कहलाता है।
- पुद्गल: पुद्गल कर्मों का फल है।
- कर्म: कर्म जीव द्वारा किए गए कार्य हैं।
- मोक्ष: मोक्ष जीव का बंधन से मुक्ति है।
भगवान महावीर ने वस्त्र त्यागकर और कठोर तपस्या करके मानव जीवन के सच्चे मूल्यों का संदेश दिया। उनका जीवन त्याग, समर्पण और अहिंसा का प्रेरणादायी उदाहरण है। जैन दर्शन जीवन जीने का एक सदाचारपूर्ण मार्ग प्रदान करता है, जो सभी के लिए कल्याणकारी है।sharemore_vert
भगवान महावीर ने वस्त्र त्याग क्यों किए?
भगवान महावीर, जैन धर्म के 24वें और अंतिम तीर्थंकर, जिन्होंने 599 ईसा पूर्व में जन्म लिया था, उन्होंने अपने जीवन में अनेक त्याग किए, जिनमें सबसे महत्वपूर्ण था वस्त्र त्याग।
वस्त्र त्याग के पीछे अनेक कारण थे:
1. अपरिग्रह (अपरिग्रह):
भगवान महावीर अपरिग्रह के कट्टर समर्थक थे। अपरिग्रह का अर्थ है सभी प्रकार की वस्तुओं से मोह त्यागना। उनका मानना था कि वस्त्र भी एक प्रकार का परिग्रह है, जिससे मोह पैदा होता है। वे मानते थे कि मनुष्य को केवल उतनी ही वस्तुओं का उपयोग करना चाहिए जितनी कि उसके जीवन जीने के लिए आवश्यक है।
2. समानता:
वस्त्र त्यागने से सभी मनुष्य समान दिखाई देते हैं, चाहे वे अमीर हों या गरीब। भगवान महावीर जाति, वर्ग और लिंग के भेदभावों को मिटाना चाहते थे। उनका मानना था कि सभी मनुष्य आत्मा रूप में समान हैं और उन्हें समान सम्मान मिलना चाहिए।
3. आत्मशुद्धि:
वस्त्र त्यागने से मन और शरीर दोनों शुद्ध होते हैं। भगवान महावीर का मानना था कि वस्त्रों से पसीना और गंदगी जमा होती है, जिससे मन और शरीर दोनों अशुद्ध होते हैं।
4. अहिंसा:
वस्त्र बनाने के लिए रेशम के कीड़ों और अन्य जीवों को मारना पड़ता है। भगवान महावीर अहिंसा के कट्टर समर्थक थे, इसलिए उन्होंने वस्त्र त्याग दिए।
5. तपस्या:
वस्त्र त्याग कठोर तपस्या का एक रूप है। भगवान महावीर ने अपने जीवन में अनेक कठोर तपस्याएं कीं और वस्त्र त्याग भी उनकी तपस्या का एक भाग था।
वस्त्र त्याग का प्रभाव:
भगवान महावीर के वस्त्र त्याग का उनके जीवन और जैन धर्म पर गहरा प्रभाव पड़ा।
- उनका जीवन और भी सरल और त्यागपूर्ण हो गया।
- वे और भी अधिक अहिंसक बन गए।
- उनका संदेश लोगों तक और भी प्रभावशाली ढंग से पहुंचने लगा।
- जैन धर्म में दिगंबर परंपरा की स्थापना हुई।
भगवान महावीर ने वस्त्र त्याग इसलिए किया क्योंकि वे अपरिग्रह, समानता, आत्मशुद्धि, अहिंसा और तपस्या के कट्टर समर्थक थे। उनके वस्त्र त्याग का उनके जीवन और जैन धर्म पर गहरा प्रभाव पड़ा।
यह ध्यान रखना महत्वपूर्ण है कि सभी जैन मुनि वस्त्र त्याग नहीं करते हैं। केवल दिगंबर जैन मुनि ही वस्त्र त्याग करते हैं। श्वेतांबर जैन मुनि सफेद वस्त्र धारण करते हैं।

Why Did Lord Mahavira Renounce Clothing?
Lord Mahavira, the 24th and final Tirthankara of Jainism who lived from 599 BCE, made many renunciations in his lifetime. Among the most significant was his decision to forgo clothing entirely. This act stemmed from several core Jain principles:
1. Aparigraha (Non-Possession):
Lord Mahavira was a staunch advocate for aparigraha, which translates to non-possession and detachment from material belongings. He believed that clothing, too, could be a form of attachment. He advocated using only what was necessary for survival, minimizing desires for worldly possessions.
2. Equality:
By renouncing clothing, all people appear the same, regardless of wealth or social status. Lord Mahavira sought to dismantle societal hierarchies based on caste, class, and gender. He believed all souls are equal and deserve equal respect.
3. Self-Purification:
Clothing can accumulate sweat and dirt, leading to physical and potentially mental impurity. Mahavira believed that by going unclothed, both body and mind could achieve a higher state of purity.
4. Non-Violence (Ahimsa):
Manufacturing clothing, especially silk, often involves harming living beings like silkworms. A staunch advocate of ahimsa, Mahavira saw this as a violation of his core principle.
5. Austerity:
Renouncing clothing served as a form of severe asceticism. Throughout his life, Mahavira undertook many rigorous practices, and his choice of nudity was an extension of this dedication to austerity.
Impact of Renouncing Clothing:
Lord Mahavira’s decision to forgo clothing had a profound impact on his life and the development of Jainism:
- Simplified and intensified his commitment to renunciation.
- Further solidified his practice of non-violence.
- Made his message even more impactful and attention-grabbing.
- Led to the establishment of the Digambara sect within Jainism.
Lord Mahavira’s renunciation of clothing stemmed from his devotion to aparigraha, equality, self-purification, ahimsa, and austerity. This act had a lasting impact on his life and the Jain faith. It’s important to note that not all Jain monks renounce clothing. Only the Digambara sect practices nudity, while the Śvetāmbara sect wears simple white garments.